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जय गुरू देव जी की जीवन के पिछे के रहस्य जान के हों जाएंगे हैरान

जय गुरू देव जी महाराज किसी ईश्वर से कम नहीं है, वह एक साक्षात् भगवान है उनके द्वारा कहीं गई बात इस पाप भरी कलयुग में सत्य है,इनके भक्त पूरी दुनिया मे है,



आप ये सोच रहे होंगे,आखिर जय गुरू देव जी महाराज इनके पिछे का रहस्य कैसा होगा,इनके चेले कैसे होंगे,

आपको जान के हैरानी होगी कि शुरू में इनके तीन चले थे, इनकी पूरी कहानी इस प्रकार से है 

ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म 1896 में खितौरा, एक यादव परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम तुलसीदास रखा था। सात साल की उम्र में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु से पहले उनकी मां ने उन्हें भगवान कृष्ण की खोज के लिए प्रेरित किया था।

इसके बाद वे गुरु श्री ओंकारनाथ की शरण में गए और मोक्ष की खोज में निकल पड़े। क्रिस्टोफर के चिरौली में तुलसीदास जी के सानिध्य संत गुएलाल से हुई। उनके साथ वे 18 घंटे तक ध्यान में लीन रहें।

दिसंबर 1950 में अपनी मृत्यु से पहले संतलाल ने तुलसीदास को अपने विचार दुनिया में फैलाने के लिए प्रेरित किया। संत तुलसीदास ने 10 जुलाई 1952 को वाराणसी में उद्बोधन दिया। इसके बाद उनकी नक्षत्र संख्या में वृद्धि हुई। वे उन्हें सामाजिक और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेरित करने लगें। इसी दौरान संत तुलसीदास ने अपना नाम 'जय गुरुदेव' चुना और उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे।

जब देश में मौत हुई तो 29 जून 1975 को उन्हें भी जेल में डाल दिया गया। उन्हें आगरा और स्ट्रॉबेरी की जेलों में रखा गया था, लेकिन उनकी प्रतिभाओं की भारी भीड़ जमा हो गई, जिससे बचने के लिए उन्हें बेंगलुरु सेंट्रल जेल भेज दिया गया। वहां से उन्हें तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया।

करीब दो साल बाद 23 मार्च 1977 को उन्हें रिहा कर दिया गया। उनके शिष्य इस दिन को जय गुरुदेव के मुक्ति दिवस के रूप में मनाने लगे। जय गुरुदेव ने प्रवचनों के माध्यम से अपने आख्यानों की संख्या के आधार पर 250 आश्रमों में स्थापित किया।

यहां एक ट्रस्ट बना और इस तरह का विवाद शुरू हो गया

20 नवंबर 1977 को जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संघ ट्रस्ट मथुरा ट्रस्ट की स्थापना हुई। 24 मई 1979 को दूसरे ट्रस्ट की स्थापना जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था के नाम से जय गुरुदेव योग स्थली आगरा-दिल्ली रोड महोली मथुरा में की गई। तीसरे जय गुरुदेव धर्म प्रचारक कोठी मंदिर ट्रस्ट की स्थापना खितौरा इटावा में की गई।

इनमें से एक सबसे अहम माना जाता है। इस दौरान जय गुरुदेव ने 'दूरशारी पार्टी' में छह सदस्यीय चुनावी लड़ाई और 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। हालाँकि, वह एक भी सीट नहीं जीत पाई।

इन ट्रस्टों के ट्रस्टों में साफ़ कहा गया था कि जय गुरुदेव तीर्थ ट्रस्टों के अध्यक्ष होंगे। ट्रस्ट में तीन तरह के सदस्य नियुक्त किये जायेंगे। पहला 'नामित सदस्य', द्वितीय प्रबंध सदस्य और तीसरा महासभा सदस्य।

सभी सदस्यों को केवल अध्यक्ष ही मनोनीत कर सकते थे। केवल वर्तमान अध्यक्ष अर्थात जय गुरुदेव ही विश्वास के अगले राष्ट्रपति को चुना जा सकता है। 18 मई 2012 को उनका निधन हो गया और उनके प्रति विवाद शुरू हो गया।

पंकज कुमार यादव ने ही जय गुरुदेव की चिता को मुखाग्नि दी। 

जय गुरुदेव के निधन के बाद 13 तारीख को मथुरा स्थित आश्रम में उनके भंडारे का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम के तुरंत बाद उनके शिष्य फूल सिंह ने ट्रस्ट के सदस्यों को एक पत्र जारी किया। इसमें लिखा था कि जय गुरुदेव ने पंकज कुमार यादव को ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त किया है।

पंकज कभी उनके ड्राइवर थे और बाद में उनके करीबी बन गए। उन्होंने ही जय गुरुदेव की चिता को मुखाग्नि दी थी। बाद में और भी आवेदक सामने आए और जय गुरुदेव के उत्तराधिकारी का विवाद मथुरा जिला कोर्ट और अल्लाहाबाद उच्च न्यायालय तक पहुंच गया।

पंकज यादव ने डिप्टी बैजल के साथ मिलकर दावा किया कि जय गुरुदेव ने उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए मनोनीत किया था। वे जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था के अध्यक्ष होने के प्रमाण पत्र के रूप में वार्षिक सूची प्रस्तुत करते हैं।

आगरा की विभिन्न फर्म, सोसायटी और चिटों में उन्हें राष्ट्रपति के रूप में जाते हुए दिखाया गया था। इस बीच पंकज ने प्रवचन शुरू किया है।

उनकी बैठकें उत्तर भारत समेत यूपी में होती हैं। वे मुख्य मंच पर नहीं हैं। वहां गुरुदेव के चित्र औषध हैं और नीचे प्रवचन देते हैं। आगरा में विभिन्न फर्म, सोसायटी और चिट उन्हें राष्ट्रपति के तौर पर दिखा रही हैं। इस बीच पंकज ने प्रवचन शुरू किया है।

उनकी बैठकें उत्तर प्रदेश समेत पूरे उत्तर भारत में रहीं। वे मुख्य मंच पर नहीं हैं। वहां गुरुदेव की तस्वीरें हैं और नीचे अंत में प्रवचन देते हैं।

उमाकांत तिवारी ने इंदौर और मुजफ्फरपुर में स्थित आश्रम में निवास किया

उमाकांत तिवारी

उमाकांत तिवारी ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने खुद को राष्ट्रपति के तौर पर संबोधित करना शुरू कर दिया और एक धार्मिक सभा के आयोजन में खुद को अलंकारिक तरीके से राष्ट्रपति के रूप में पेश किया। 

वहीं उमाकांत तिवारी ने डेरे और मज़हबी आश्रम में उन्हें अपने क्षेत्र का केंद्रबिंदु व्याख्यान देना शुरू कर दिया था। मामला जब उच्च न्यायालय के सामने पहुंचा तो उमाकांत ने डिप्टी स्केटर्स की एक सूची भी पेश की, जिसमें उन्होंने खुद को जय गुरुदेव धर्म प्रचार संस्था के अध्यक्ष के बारे में बताया। 

उन्होंने पंकज कुमार की तरह एक और वार्षिक सूची पेश की, जिसमें आगरा की कई फर्म, सोसायटी और चिट देम के अध्यक्ष के रूप में नजर आ रही थीं। उमाकांत तिवारी वर्तमान में बाबा उमाकांत के नाम से मुजफ्फरपुर में आश्रम आश्रम हैं। 

वह मध्य प्रदेश, राजस्थान और मध्य भारत के अन्य द्वीपों में प्रवचन देते हैं। इस दौरान उन्होंने खुद को राष्ट्रपति के तौर पर दिखाया। अपनी खुद की वेबसाइट पर उन्होंने अपने आदर्शों को सोशल मीडिया पर जय गुरुदेव के किसी भी पेज से दूर रहने की सलाह दी है। उत्तराधिकारियों के विवाद की तीसरी कड़ी रामवृक्ष यादव थे। वह 1980 में जय गुरुदेव के संपर्क में आए और बाबा की दूरदर्शी पार्टी से चमत्कारिक ढंग से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। मथुरा में जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था के साथ काम करते हुए 2006 में उनके आक्रामक व्यवहार की विचारधारा जय गुरुदेव तक थी।

इस पर उन्हें संगठन से हटा दिया गया। फिर रामबृक्ष ने बनाया स्वाधीनता भारत संगठन। जय गुरुदेव की मृत्यु के बाद उनके समर्पण के बल पर वह स्वयं उनके उत्तराधिकारी बने। उनके अधिकांश समर्थक जय गुरुदेव के अनुयायी थे।

अपनी अव्यवहारिक प्रकृति को पूर्ण रूप से अलग करने के लिए वे 11 जनवरी 2014 को मध्य प्रदेश से अनेक बौद्धों के साथ 'स्वतंत्र भारत विधिक शास्त्र' के नाम से दिल्ली के लिए निकले। महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान होते गए वे मथुरा क्षेत्र और जवाहर बाग में बस गए।

यहां जय गुरुदेव के प्राचीन रामवृक्ष से जुड़े और पूरा गांव 275 ओकरा के जवाहर बाग में बस गए। औद्योगिक संयंत्र के बावजूद वह वहां से उद्योगों को तैयार नहीं था। पुलिस ने सामने पेश की तो मथुरा की घटना आई।

इस विवाद में डिप्टी स्ट्रेकेट ने पंकज कुमार को सुपरस्टार मान लिया। यह आदेश 24 जुलाई 2012 को दिया गया। बाद में एक अन्य व्यक्ति राम प्रताप ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

उन्हें ट्रस्ट के उपाध्यक्ष ने बताया। उच्च न्यायालय ने केस की सुनवाई मथुरा जिला अदालत में करने के निर्देश दिए। इसके बाद उच्च न्यायालय में अपीलों की कार्यवाही, संयुक्त राष्ट्र में अपील और सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अपीलों की अपीलें शुरू हो गईं।

विवाद के पीछे है प्रॉपर्टी का मालिक

उत्तराधिकार के इस पूरे विवाद में कहीं न कहीं जय गुरुदेव ने मिलकर संपत्ति और धन का मोह भी किया। 2012 में जय गुरुदेव की मृत्यु के बाद मीडिया में आई जानकारी के अनुसार ट्रस्ट के पास करीब 12 हजार करोड़ की संपत्ति थी। 

वहीं ट्रस्टों के पास बैंकों में 100 करोड़ रुपए जमा थे। वहीं जय गुरुदेव के वाहक का बेड़ा भी बहुत प्रसिद्ध था। इसमें बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज बेंज समेत 250 कारें शामिल थीं। इनकी कीमत करीब 150 करोड़ रुपये बताई गई है।

आश्रम में वन विभाग के करीब 300 आश्रम भूमि पर बने आश्रम, मथुरा में आश्रम, दिल्ली राजमार्ग पर आश्रम, मथुरा में ही एक पेट्रोल पंप, एक स्कूल से लेकर कई जिलों में 100 से अधिक आश्रम आश्रम में आश्रम में प्रवेश मिलता है।

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